भगवद्गीता के 21 जीवन बदलने वाले उपदेश

“जब जब धर्म की हानि होती है, और अधर्म बढ़ता है, तब तब मैं स्वयं आता हूँ…”
यह श्रीकृष्ण का वचन है — श्रीमद्भगवद्गीता से।
गीता सिर्फ एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, यह एक संपूर्ण जीवन-दर्शन है।
इस लेख में हम जानेंगे भगवद्गीता की 21 ऐसी बातें जो हमारे जीवन को बदल सकती हैं – सोच, व्यवहार, रिश्ते और आत्मा को एक नई दिशा देने वाली बातें।
तो आइए, आत्मा की आवाज़ से जुड़े इस दिव्य ज्ञान को समझते हैं।

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1 भगवद्गीता के 21 जीवन बदलने वाले उपदेश:-

भगवद्गीता के 21 जीवन बदलने वाले उपदेश

भगवद्गीता के 21 जीवन बदलने वाले उपदेश:-

1. कर्म करो, फल की चिंता मत करो:

श्लोक(अध्याय 2, श्लोक 47)

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

हिंदी अर्थ:
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल में कभी नहीं। इसलिए तुम कर्म के फल के हेतु मत बनो, और न ही कर्म न करने में आसक्त हो।

2. आत्मा न कभी जन्म लेती है, न मरती है:

श्लोक (अध्याय 2, श्लोक 20):

न जायते म्रियते वा कदाचित्
नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥

हिंदी अर्थ:
आत्मा न कभी जन्म लेती है और न ही कभी मरती है। वह न कभी उत्पन्न हुई है, न कभी उत्पन्न होगी। यह अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है। शरीर के मारे जाने पर भी आत्मा नहीं मारी जाती।

3. क्रोध से विनाश होता है:

श्लोक (अध्याय 2, श्लोक 63):

क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥

हिंदी अर्थ:
क्रोध से भ्रम उत्पन्न होता है, भ्रम से स्मृति का नाश होता है, स्मृति के अभाव से बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि के नष्ट होने पर व्यक्ति का पतन हो जाता है।

 4. मन ही मित्र और शत्रु है:

श्लोक (अध्याय 6, श्लोक 5):

उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥

हिंदी अर्थ:
मनुष्य को चाहिए कि वह अपने मन के द्वारा अपना उद्धार करे, न कि स्वयं को नीचा दिखाए। क्योंकि मन ही उसका मित्र है और मन ही उसका शत्रु।

5. इंद्रियों का नियंत्रण ही ज्ञान है:

श्लोक (अध्याय 3, श्लोक 43):

एवम बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना।
जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्॥

हिंदी अर्थ:
हे महाबाहो! इस प्रकार आत्मा से भी श्रेष्ठ बुद्धि को जानकर, अपने मन से आत्मा को स्थिर करके उस दुर्जय शत्रु रूपी काम (इच्छाओं) का नाश कर।

6. संतुलन ज़रूरी है:

श्लोक (अध्याय 6, श्लोक 16-17):

नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः।
न चातिस्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन॥
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा॥

हिंदी अर्थ:
हे अर्जुन! न तो बहुत खाने वाले, न ही बहुत कम खाने वाले, न अधिक सोने वाले, और न ही सदैव जागने वाले योग में सिद्ध होते हैं। जो आहार, विहार, कर्म और निद्रा में संयम रखता है, वही योग से दुःखों का नाश कर सकता है।

7. प्रशंसा और निंदा से ऊपर उठो:

श्लोक (अध्याय 12, श्लोक 19):

तुल्यनिन्दास्तुतिर्मौनी सन्तुष्टो येन केनचित्।
अनिकेतः स्थिरमतिर्भक्तिमान्मे प्रियो नरः॥

हिंदी अर्थ:
जो निंदा और प्रशंसा में समभाव रखता है, मौन रहता है, जो भी प्राप्त हो उसमें संतुष्ट रहता है, जो स्थिर बुद्धि वाला और भक्तिपूर्ण जीवन जीता है – वह मुझे प्रिय है।

8. जो हुआ, अच्छा हुआ…

(यह विचार गीता के समग्र संदेश का सार है, इसका सीधा श्लोक नहीं है, पर इसका भाव अध्याय 2, श्लोक 13, 14, 15 में निहित है।)

हिंदी भावार्थ:
बीते हुए पर पछताना छोड़ो। वर्तमान में जियो। जो हुआ, उसमें भी ईश्वर की योजना थी और जो होगा, उसमें भी उसकी कृपा है।

9. शंका विनाश की जड़ है:

श्लोक (अध्याय 4, श्लोक 40):

अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।
नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः॥

हिंदी अर्थ:
जो अज्ञानी है, जिसमें श्रद्धा नहीं है, और जो संदेह करता है – वह विनाश को प्राप्त होता है।
न उसे इस लोक में सुख है, न परलोक में।

10. श्रद्धा से ज्ञान मिलता है:

श्लोक (अध्याय 4, श्लोक 39):

श्रद्धावान् लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥

हिंदी अर्थ:
जो श्रद्धावान है, जो इंद्रियों को संयम में रखता है, और जो ज्ञान के लिए तत्पर है, वह शीघ्र ही परम शांति को प्राप्त करता है।

11. मृत्यु अंत नहीं, एक परिवर्तन है:

श्लोक (अध्याय 2, श्लोक 22):

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीरा णि विहाय जीर्णा
न्यन्यानि संयाति नवानि देही॥

हिंदी अर्थ:
जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को छोड़कर नए वस्त्र पहनता है, वैसे ही आत्मा पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करती है।
मृत्यु अंत नहीं, आत्मा की यात्रा का नया पड़ाव है।

12. अहंकार का त्याग करें:

श्लोक (अध्याय 18, श्लोक 58):

मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि।
अथ चेत्त्वमहंकारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि॥

हिंदी अर्थ:
यदि तुम अहंकार करते हुए मेरी बात नहीं सुनोगे, तो तुम नष्ट हो जाओगे।
कृष्ण का संदेश है — अहंकार विनाश की ओर ले जाता है, विनम्रता उन्नति की ओर।

13. जो बीत गया उसे जाने दो:

श्लोक (अध्याय 2, श्लोक 14):

मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत॥

हिंदी अर्थ:
हे कुन्तीपुत्र! सर्दी-गर्मी, सुख-दुख सब इंद्रियों के संपर्क से उत्पन्न होते हैं, ये अनित्य हैं – इसलिए धैर्य से सहन करो और आगे बढ़ो।

14. सच्चा योगी वही है जो सबमें ईश्वर देखे:

श्लोक (अध्याय 6, श्लोक 29):

सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि।
ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः॥

हिंदी अर्थ:
जो योगी सभी प्राणियों में आत्मा को और सभी प्राणियों को आत्मा में देखता है, वह हर जगह समभाव से देखने वाला बन जाता है।

15. भक्ति सबसे श्रेष्ठ मार्ग है:

श्लोक (अध्याय 9, श्लोक 22):

अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥

हिंदी अर्थ:
जो मनुष्य मुझे अनन्य भाव से भजते हैं, उनके योग (साधन) और क्षेम (सुरक्षा) की चिंता मैं स्वयं करता हूँ।

16. स्वयं पर नियंत्रण ही सच्चा बल है:

श्लोक (अध्याय 5, श्लोक 7):

योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः।
सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते॥

हिंदी अर्थ:
जो योगयुक्त, आत्मनियंत्रित और इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर चुका है, वह कार्य करते हुए भी पाप में लिप्त नहीं होता।

17. समभाव रखो – यही योग है:

श्लोक (अध्याय 2, श्लोक 48):

योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥

हिंदी अर्थ:
हे धनञ्जय (अर्जुन), आसक्ति त्यागकर समत्व के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करो। सफलता और असफलता में समान भाव रखो – यही सच्चा योग है।

18. त्याग से ही सच्चा सुख प्राप्त होता है:

श्लोक (अध्याय 5, श्लोक 3):

त्यागी संन्यासी च न द्वेष्टि न काङ्क्षति।
निर्ममो निरहंकारी स शान्तिं अधिगच्छति॥

हिंदी अर्थ:
जो व्यक्ति द्वेष नहीं करता और ना ही इच्छाओं से बंधा होता है, जो अहंकार और ममता से मुक्त होता है, वही सच्ची शांति को प्राप्त करता है।

19. धर्म का पालन ही परम कर्तव्य है:

श्लोक (अध्याय 3, श्लोक 35):

श्रेयान् स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः॥

हिंदी अर्थ:
अपने धर्म में मर जाना भी श्रेयस्कर है, दूसरे के धर्म का पालन करना भयावह होता है।
जो व्यक्ति अपने जीवन कर्तव्यों से नहीं भागता, वही सच्चा धर्मात्मा है।

20. ध्यान ही आत्मा का मिलन है:

श्लोक (अध्याय 6, श्लोक 10):

योगी युञ्जीत सततमात्मानं रहसि स्थितः।
एकाकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रहः॥

हिंदी अर्थ:
योगी को एकांत में, एकाग्रचित्त होकर, बिना इच्छा और संग्रह के, नित्य आत्मा का ध्यान करना चाहिए।
ध्यान से ही आत्मा से संपर्क होता है।

21. मैं ही सब कुछ हूँ – ईश्वर की विराटता:

श्लोक (अध्याय 10, श्लोक 20):

अहम् आत्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः।
अहम् आदिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च॥

हिंदी अर्थ:
हे गुडाकेश (अर्जुन)! मैं सभी जीवों के हृदय में स्थित आत्मा हूँ। मैं ही समस्त प्राणियों का आदि, मध्य और अंत हूँ।
यह समझ लेना ही ईश्वर को जानना है।

अंतिम संदेश:

इन 21 श्लोकों में जीवन का पूर्ण सार छुपा है।
गीता न पढ़ने के लिए नहीं, जीने के लिए है।
अगर आप इन उपदेशों को जीवन में उतार लें, तो न तो आप कभी हारेंगे, न भटकेंगे।

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