भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हुए “सिंधु जल समझौता” को दुनिया के सबसे सफल जल समझौतों में से एक माना जाता है। यह समझौता दोनों देशों के बीच पानी के बँटवारे का एक स्थायी समाधान प्रस्तुत करता है, जो अब तक लगभग बिना किसी बड़े व्यवधान के लागू हो रहा है। इस समझौते ने न केवल दो दुश्मन देशों के बीच पानी के संघर्ष को टाला, बल्कि एक स्थायी मैकेनिज्म भी स्थापित किया, जिससे भविष्य के विवादों को भी शांति से सुलझाया जा सके।
इस समझौते के तहत, सिंधु नदी प्रणाली की छह प्रमुख नदियों का बँटवारा हुआ — जिसमें से तीन पूर्वी नदियाँ (रावी, व्यास, सतलज) भारत को दी गईं और तीन पश्चिमी नदियाँ (सिंधु, झेलम, चेनाब) पाकिस्तान को सौंपी गईं। यह व्यवस्था, कई बार तनावपूर्ण रिश्तों के बावजूद, आज तक कायम है।
सिंधु जल समझौते ने यह सुनिश्चित किया कि कोई भी देश एक-दूसरे के जल संसाधनों का शोषण न कर सके और जल का उपयोग एक निर्धारित ढांचे के तहत हो। इसने पानी जैसे अमूल्य संसाधन को लेकर संभावित युद्ध को रोका और एक मिसाल कायम की कि कैसे कठिन परिस्थितियों में भी समझदारी से समाधान निकाला जा सकता है।

1947 में भारत-पाकिस्तान के विभाजन के बाद, सिंधु नदी प्रणाली के प्रमुख स्रोत भारत के अधिकार क्षेत्र में आ गए थे। इससे पाकिस्तान को अपने कृषि कार्यों के लिए पानी की आपूर्ति को लेकर चिंता होने लगी। शुरुआती वर्षों में जल आपूर्ति पर विवाद बढ़ने लगा, जिसे शांतिपूर्वक सुलझाने के लिए दोनों देशों के बीच एक स्थायी समझौते की आवश्यकता महसूस की गई।
अमेरिका और विश्व बैंक की मध्यस्थता में कई वर्षों की बातचीत के बाद, 19 सितंबर 1960 को कराची (अब लाहौर में) में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने “सिंधु जल समझौते” पर हस्ताक्षर किए।
समझौते की आवश्यकता क्यों पड़ी?:-
बिना किसी स्थायी व्यवस्था के, दोनों देशों के बीच लगातार तनाव बना रहा। पाकिस्तान के लिए तो यह ‘जिंदगी और मौत’ का सवाल बन गया था क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि आधारित थी, जो इन नदियों के जल पर निर्भर थी। भारत के लिए भी यह एक अवसर था कि वह अंतरराष्ट्रीय मंच पर खुद को जिम्मेदार और न्यायप्रिय देश के रूप में प्रस्तुत कर सके।
इस संदर्भ में, एक स्थायी जल समझौते की आवश्यकता दिन-ब-दिन बढ़ती गई। अंततः, विश्व बैंक की मध्यस्थता में, दोनों देशों ने बातचीत शुरू की जो आठ वर्षों तक चली और 1960 में एक ऐतिहासिक समझौते के रूप में परिणत हुई।
समझौते के मुख्य बिंदु:
- नदी बँटवारा:
- सिंधु नदी प्रणाली की छह नदियों को दो हिस्सों में बाँटा गया:
- पूर्वी नदियाँ: ब्यास, रावी और सतलुज — इनका नियंत्रण भारत को मिला।
- पश्चिमी नदियाँ: सिंधु, झेलम और चिनाब — इनका अधिकांश पानी पाकिस्तान को दिया गया।
- सिंधु नदी प्रणाली की छह नदियों को दो हिस्सों में बाँटा गया:
- भारत के अधिकार:
भारत को पूर्वी नदियों का पूर्ण उपयोग (सिंचाई, जल आपूर्ति, औद्योगिक उपयोग) करने का अधिकार मिला। पश्चिमी नदियों पर सीमित उपयोग की अनुमति मिली जैसे — कृषि कार्य, रन-ऑफ-रिवर पनबिजली परियोजनाएँ और गैर-खपत वाले उपयोग। - संयुक्त निगरानी व्यवस्था:
दोनों देशों ने एक “स्थायी सिंधु आयोग” (Permanent Indus Commission) का गठन किया, जिसमें दोनों ओर से एक-एक आयुक्त नियुक्त किए गए। यह आयोग हर साल बैठक करता है और समझौते के क्रियान्वयन की निगरानी करता है। - विवाद निपटान प्रक्रिया:
यदि किसी विवाद का समाधान आयोग में नहीं हो पाता, तो उसे मध्यस्थता या विश्व बैंक की सहायता से सुलझाया जाता है।
सिंधु जल समझौते का महत्व:
- शांति का प्रतीक:
इस समझौते ने भारत और पाकिस्तान के बीच जल युद्ध को टालने में मदद की, भले ही दोनों देशों के बीच कई बार युद्ध और तनावपूर्ण हालात बने हों। - कृषि और जीवन रेखा:
पाकिस्तान के कृषि क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा सिंधु प्रणाली के पानी पर निर्भर है। वहीं भारत भी इस पानी का उपयोग अपनी सीमावर्ती राज्यों की जरूरतों के लिए करता है। - वैश्विक उदाहरण:
यह समझौता दुनिया के अन्य देशों के लिए एक उदाहरण है कि कैसे दो विरोधी राष्ट्र जल संसाधनों का शांतिपूर्ण और न्यायपूर्ण बँटवारा कर सकते हैं।
वर्तमान चुनौतियाँ:
पहलगाम आतंकी हमला 22 अप्रैल, 2025 को भारत प्रशासित जम्मू और कश्मीर के एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल पहलगाम के पास बैसरन घास के मैदान में हुआ था। बंदूकधारियों ने पर्यटकों पर गोलीबारी की, जिसमें 25 पर्यटकों और एक स्थानीय टट्टू-वाले सहित 26 लोग मारे गए और एक दर्जन अन्य घायल हो गए। इस हमले के कारन भारत ने सिंधु जल समझौता रद्द कर दिया जिससे पाकिस्तान पर जल संकट का खतरा बढ़ सकता है।
निष्कर्ष:
सिंधु जल समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच भरोसे और सहयोग का एक अनूठा उदाहरण है। हालांकि समय बदल चुका है और चुनौतियाँ बढ़ गई हैं, फिर भी इस समझौते ने अब तक जल विवादों को एक बड़े युद्ध में बदलने से रोका है। आने वाले समय में दोनों देशों को इस अमूल्य संसाधन का न्यायपूर्ण और टिकाऊ उपयोग सुनिश्चित करने के लिए नए कदम उठाने की जरूरत होगी।