मोबाइल में खोया बचपन? 2020

आज के डिजिटल युग में जहां प्रौद्योगिकी हमारे जीवन के हर पहलू में व्याप्त है। यह चिंता बढ़ रही है कि बचपन मोबाइल में खो(मोबाइल में खोया बचपन) गया है। स्मार्टफोन, टैबलेट और अन्य डिजिटल गैजेट्स का मनमोहक आकर्षण बड़े होने का एक अनिवार्य हिस्सा बन गया है। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम बचपन पर डिजिटल युग के प्रभाव का पता लगाएंगे और हम यह सुनिश्चित करने के लिए आभासी और वास्तविक के बीच संतुलन बनाने का प्रयास कैसे कर सकते हैं।

मोबाइल में खोया बचपन

मोबाइल में खोया बचपन: childhood lost in mobile.

1.मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर: आज का समय तकनीकी का समय है और घर-घर में स्मार्ट फ़ोन है तो बच्चे भी उसका प्रयोग करते है। हम उम्र निर्धारण नहीं कर सकते क्योकि आजकल छोटे से छोटा बच्चा भी मोबाइल का प्रयोग करता है।
मोबाइल ने बच्चों से शारीरिक क्रियाएं और खेल कूद सब छीन लिया है जिससे उनका शारीरिक और मानसिक विकास नहीं हो पा रहा है और वो मोटापे का शिकार होते जा रहे हैं। जिससे वो अनेक बीमारियों से गृहसित होते जा रहे हैं।

2.अपनापन का अभाव:- ज्यादा मोबाइल प्रयोग के लिए माता-पिता ही जिम्मेदार है क्योंकि जब बालक किसी बात के लिए बोलता है तो माता-पिता अपना पीछा छुड़ाने के लिए उसे मोबाइल पकड़ा देते है।
बालक के साथ खेलते नहीं है जिससे माँ-बाप व बच्चों के बीच आत्मीयता की भावना का विकास नहीं हो पता।

3.गलत आदतों का शिकार: – मोबाइल के प्रयोग से बालकों को यह पता ही नहीं होता की उनके लिए क्या सही है और क्या गलत .वो जो गलत बातें मोबाइल में देखता है उसका उसके बाल मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जिससे उनका नैतिक पतन होने लगता है और वे अपराध की तरफ बदने लगते है।

अत:मोबाइल प्रयोग का समय निश्चित कर बालकों को उनका बचपन लौटने की कोशिश की जानी चाहिए।

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